इन दिनों मैं एक योग शिविर संचालित कर रहा हूँ. हर योग शिविर में मेरा मुख्य ज़ोर इस बात पर होता है कि योग व्यायाम मात्र न होकर अपने चेतन तत्व से जुड़ने का एक परम साधन है. इसीलिए हर आसन और प्राणायाम को बहुत होशपूर्वक, सही तकनीक, सही क्रम, सही मात्रा में करना आवश्यक है. इस जानकारी के बिना योग का लाभ केवल ऊपरी स्तर पर ही हो सकता है यानि शारीरिक. योग इतनी गहरी बात है कि वह आपको मानसिक, भावनात्मक, और आध्यात्मिक तंदुरुस्ती प्रदान कर सकता है, वह भी प्रचुर मात्रा में. इतनी कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते! लेकिन इसके लिए योग की सूक्ष्म समझ चाहिए.
याद रखें एक योगी का शरीर बहुत लचीला होता है लेकिन हर लचीले शरीर वाला व्यक्ति योगी नहीं होता, वर्ना हर एक जिम्नास्ट योगी होता. वैसे ही एक योगी की साँस गहरी होती है, साँस को रोकने की क्षमता बहुत होती है; लेकिन हर एक व्यक्ति जिसका साँस पर नियंत्रण हो वह योगी नहीं हो जाता, वर्ना हर तैराक योगी होता.
योगी होने का अर्थ है जो अपने अंदर स्थित शून्य, अचल, आनंदपूर्ण तत्व से जुड़ गया है.